हदय को हिला देने वाली इस कहानी में एक जानवर की अपने स्वामी के प्रति वफादारी को उजागर किया है। कभी-कभी जल्दबाजी में काम करने से पछताने की नोबत आती है।
एक बार बनजारा व्यापार में मार खा गया और रुपयों की जरूरत आ पड़ी। वह राधनपुर के एक शेठ के पास पहुंचा। उससे उसने अपनी बात बताई।
शेठ ने कहा, रुपये तो मै दे दूंगा, मगर उसके बदले में तुम क्या गिरवी रखोगे ?
लाखा बोला, " शेठजी मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। मैंने व्यापार में सब कुछ खो दिया है। मेरी जबान पर विश्वास रखें और मुझे रुपये दे दीजिए। मैं आपकी पूरी रकम सूद समेत एक साल में ही चुका दूँगा। "
शेठ बोले, " कोई बात नहीं। तुम्हारे पास यह कुत्ता है। तो तुम इसे ही जमानत के रूप में दे दो।जब तुम सारे रुपये लौटा दोगे, तब मैं भी कुत्ता तुम्हें वापस दे दूँगा।"
बनजारे को दुःख तो बहुत हुआ अपने कुत्ते को देने मे, मगर कोई चारा नहीं था। रुपये लेकर वह चला गया।
कुछ दिन बीते। एक बार शेठ के यहाँ चोरो ने डाका डाला। कुत्ते ने चोरो का पीछा किया। दूर जंगल में जाकर चोरो ने सारा माल-सामान जमीन में गाड़ दिया और वहाँ से नौ -दो- ग्यारह हो गए। कुत्ता वहाँ भौंक -भौंक कर शेठ को बताने लगा कि लुटेरे आपकी दुकान को तोड़कर माल उठा ले गए हैं।
इधर लाखा ने भी व्यापार में खूब रुपया कमाया। वह शेठ को उसकी रकम वापस करने के लिए उसी रास्ते से आ रहा था। उसने दूर से अपने कुत्ते को अपनी ओर आते हुए देखा। वह नाराज हो गया। सोचने लगा कि कुते ने मेरी जबान काट ली है। उसने बेवफाई की है। अब मैं शेठ को क्या मुँह दिखाऊंगा ? उसने आव देखा न ताव; बस, कुते के माथे पर लाठी का प्रहार कर दिया। कुत्ता बेहोश होकर गिर पड़ा। लाखा ने देखा कि कुत्ते के गले के पट्टे में एक चिठ्ठी बँधी है। उसने इसे खोलकर पढ़ा
उत्तर गुजरात के पाटन जिले में राधनपुर नाम का एक छोटा सा नगर है। वहाँ एक तालाब है, जिसके तट पर एक कुत्ते की समाधि है। समाधि और वह भी कुत्ते की - यह जानकर आश्चर्य होगा ही। इसके पीछे एक सुंदर और हदय को हिला देने वाली कथा है।
पुराने जमाने में व्यापार का सामान लाने - ले जाने का काम बनजारे करते थे। एक बनजारा था। वह अपने ऊटो पर गाँवो का माल-सामान लादकर शहरों में ले जाता था और वहाँ से मिसरी, गुड़ - मसाले आदि भरकर गाँवो तक ले जाता था। लाखो का व्यापार था उसका । इसीलिए लोग उसे लाखा बनजारा कहते थे । लाखा के पास एक सुंदर कुत्ता था। कुत्ता बडा वफादार था। रात को वह बनजारे के पड़ाव की रखवाली करता था। अगर चोर , लुटेरे पड़ाव की तरफ आते दिखाई देते थे तो कुत्ता भौंक-भौंक कर उन्हें दूर भगा देता था। बनजारा अपने कुते की वफादारी से खुश था।
एक बार बनजारा व्यापार में मार खा गया और रुपयों की जरूरत आ पड़ी। वह राधनपुर के एक शेठ के पास पहुंचा। उससे उसने अपनी बात बताई।
शेठ ने कहा, रुपये तो मै दे दूंगा, मगर उसके बदले में तुम क्या गिरवी रखोगे ?
लाखा बोला, " शेठजी मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। मैंने व्यापार में सब कुछ खो दिया है। मेरी जबान पर विश्वास रखें और मुझे रुपये दे दीजिए। मैं आपकी पूरी रकम सूद समेत एक साल में ही चुका दूँगा। "
शेठ बोले, " कोई बात नहीं। तुम्हारे पास यह कुत्ता है। तो तुम इसे ही जमानत के रूप में दे दो।जब तुम सारे रुपये लौटा दोगे, तब मैं भी कुत्ता तुम्हें वापस दे दूँगा।"
बनजारे को दुःख तो बहुत हुआ अपने कुत्ते को देने मे, मगर कोई चारा नहीं था। रुपये लेकर वह चला गया।
कुछ दिन बीते। एक बार शेठ के यहाँ चोरो ने डाका डाला। कुत्ते ने चोरो का पीछा किया। दूर जंगल में जाकर चोरो ने सारा माल-सामान जमीन में गाड़ दिया और वहाँ से नौ -दो- ग्यारह हो गए। कुत्ता वहाँ भौंक -भौंक कर शेठ को बताने लगा कि लुटेरे आपकी दुकान को तोड़कर माल उठा ले गए हैं।
शेठ तो हक्का - बक्का ही रह गए। कुत्ता शेठ की धोती पकड़कर आगे खीचने लगा। शेठ कुते के पीछे-पीछे चलने लगे। जहाँ चोरो ने माल छिपाया था, वहाँ जाकर कुत्ता अपने पैरों से मिट्टी खोदने लगा। थोड़ा ही खोदने पर सब सामान निकल आया। शेठ की खुशी का कोई पार नहीं था। वह कुते को प्रेम से थपथपाने लगा। कुते की वफादारी पर वह मुग्ध हो गया। घर जाकर उसने एक चीठी लिखकर कुत्ते के गले के पट्टे में बांध दी और अपनी जमानत में से मुक्त करके कहा, "कुत्ते भाई - जाओ तुम अपने मालिक लाखा बनजारा के पास। तुम मुक्त हो। " कुत्ता खुश हो गया और अपने मालिक से मिलने के लिए जल्दी-जल्दी भागने लगा।
इधर लाखा ने भी व्यापार में खूब रुपया कमाया। वह शेठ को उसकी रकम वापस करने के लिए उसी रास्ते से आ रहा था। उसने दूर से अपने कुत्ते को अपनी ओर आते हुए देखा। वह नाराज हो गया। सोचने लगा कि कुते ने मेरी जबान काट ली है। उसने बेवफाई की है। अब मैं शेठ को क्या मुँह दिखाऊंगा ? उसने आव देखा न ताव; बस, कुते के माथे पर लाठी का प्रहार कर दिया। कुत्ता बेहोश होकर गिर पड़ा। लाखा ने देखा कि कुत्ते के गले के पट्टे में एक चिठ्ठी बँधी है। उसने इसे खोलकर पढ़ा
"लाखा , तुम्हारे कुत्ते ने मुझे सूद समेत रुपये लौटा दिए हैं, अतः कुत्ते को मैं मुक्त करता हूँ। उसने मेरे घर से चोरी हो गए माल - सामान को वापस दिलवा दिया है। खुश होकर मैंने स्वयं इसे मुक्त किया है। लाखा तो हक्का-बक्का रह गया। वह चिल्लाने लगा, - "हाय, यह मैंने क्या कर दिया ? हाय यह मैंने क्या कर दिया ?" वह कुत्ते के शव को अपनी गोदी में लेकर फुट - फुटकर रोने लगा, लेकिन अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत ।
उसने उस वफादार कुत्ते का समाधि - मंदिर बनवाया जो आज भी राधनपुर तालाब के किनारे पर खड़ा है और उस कुत्ते की वफादारी की कथा संसार को सुना रहा है।

2 Comments
Good post chhe bhai
ReplyDeleteSaras
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