विशाल भारत में अनेकदर्शनीय स्थल है। सबका अपना महत्व और सौंदर्य है। गुजरात उनमें से एक अनूठा राज्य है। गुजरात का एक विशिष्ट जिल्ला है "कच्छ"। जो गुजरात का अत्यंत रमणीय प्रदेश है। भारत मे विस्तार में सबसे बड़ा जिल्ला कच्छ है।
रण उत्सव 360 देखिए
रण उत्सव भारत देश के गुजरात राज्य के कच्छ जिले में आयोजित किया जाता है। इस उत्सव में संगीत, नृत्य और सफेद रण की प्रकृति सौंदर्य का कोर्निवल है। पूर्ण चाँद के दिनों में रण उत्सव का नजारा देखने लायक होता है।
यात्रियों के लिए कच्छ आकर्षण का केंद्र है। इसका पौराणिक महत्व भी कम नहीं है। अनेक दर्शनीय स्थानों के वैविध्य के कारण इसे 'म्यूजियम' कह सकते है। कच्छ म्यूजियम की स्थापना सन 1877 में हुई थी, जो गुजरात का सबसे पुराना म्यूजियम है। जो त्योहार के दिनों में पृथ्वी पर के स्वर्ग जैसा अनुभव होता है।
रण उत्सव की शरुआत गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा की गई थी। कच्छ के सफेद रण में प्रकृति की अजायबी और कच्छ के समृद्ध सांस्कृतिक और कलात्मक वारसा को उजागर करता है।
ठंडी ऋतु में कच्छ की मुलाकात लेने का श्रेष्ठ समय हैं।
कच्छ का रणोत्सव देखने के लिए नीचे दिए गए वीडियो देखें।
रणोत्सव 360 देखने के लिए निचे दिए गए लिंक पर से देख सकते हैं।
कच्छ में प्रवेश करते ही हमें रेगिस्तान के दो भाग देखने को मिलता हैं - एक छोटा रेगिस्तान और दूसरा बड़ा रेगिस्तान। इन दोनों में रेगिस्तान जैसा कोई लक्षण दिखाई नहीं देते है। रेत कही नजर नहीं आती, अतः यह अनूठा रेगिस्तान है।
सामखियाली हम कच्छ का प्रवेशद्वार कह सकते है। कच्छ की यात्रा यही से आरंभ होती है। यहाँ से उतर दिशा की ओर यात्रा का प्रारंभ होता है। रापर से धोलावीरा पहुँचते ही हमारी प्राचीन संस्कृति मोहे- जो- दड़ो का स्मरण हो जाता हैं। यह स्थान 5000 वर्ष के अवशेषों का अंग है। इस प्राचीन नगरी के दर्शन से ही हम चकित रह जाते है। हमे प्राचीनता में आधुनिकता के दर्शन होते है।
समखियाली से पश्चिम की यात्रा करते भचाऊ नगर आता है। जो बड़ा गाँव है परंतु नगर जैसे लगते है। वहाँ से गांधीधाम औधोगिक कारखानो का शहर है, यहाँ सिंधी प्रजा पाकिस्तान से आकर स्थायी हुई है। गांधीधाम, आदिपुर तथा गोपालपुर उद्योगों के कारण विकसित हुए दिखाई देते है। आदिपुर में गांधीस्मृति तथा पास ही कंडला बंदर का बड़ा महत्व है। कंडला का विकास यहाँ की प्रजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण है।
कंडला से दक्षिण मि ओर भद्रेश्वर अति प्राचीन जैन यात्रा धाम है। संगमरमर से बना 2500 वर्ष पुराना जिनालय भूकंप में खंडित हुआ, उसके पुनः निर्माण का कार्य पूर जोस में चल रहा है। इसे आधुनिकता का स्पर्श मीला है। मुंद्रा शहर कि खारेक प्रख्यात है। मुंद्रा में खारेक संशोधन केंद्र है। मुंद्रा शहर तहशील मुख्यालय भी है। यहाँ अनेक उद्योगों के कारण विकास की दिशा खुली है। समुद्र के किनारे बंदरगाह विकसित हुआ है। यहाँ कुछ प्राचीन इमारते भी है। मांडवी अति सुंदर बंदरगाह है। यह शहर बड़ा प्राचीन नगर है। यह शहर राजा के महल, पवन चक्कियों तथा समुद्र तट के कारण अधिक दर्शनीय बना है। मांडवी शहर के आगे चलते डुमरा, कोठीरा, सुघरी और जखो महत्वपूर्ण गाँव है। जैनो का प्राधान्य यहाँ नजर आता है। नलिया शहर तहशील का केंद्र है। यहाँ वायु सेना का मुख्य अड्डा है।
नलिया से एक घंटे की यात्रा करने के बाद "नारायण सरोवर" - अति प्राचीन, पौराणिक, धार्मिक स्थान आता है। इस स्थान को रामायण काल का माना जाता है। वहाँ कोटेश्वर महादेव का दर्शनीय मंदिर , जहां से रावण गुजरा था। यहाँ पूरे भारत का प्राचीन स्थान माना जाता है। सूर्योदय और सूर्यास्त का दर्शन वहाँ का बड़ा आकर्षण है।
नारायण सरोवर से आगे की यात्रा में लखपत आता है जो अति प्राचीन स्थल है। गुरु नानक की चरणरज से पावन इस भूमि पर गुरुद्वारा है। एक समय का समृद्ध शहर आज जीर्णावस्था में होते हुए भी दर्शनीय है। यहाँ एक किल्ला है, उसके बगल में पानध्रो खनिज संपत्ति के लिए प्रसिद्ध है। साथ ही में यह विद्युत निर्माण का भी केंद्र है।
लखपत से मध्य कच्छ की ओर बढ़ने पर हाजीपीर मुसलमानो के लिए श्रद्धा का केन्द्र आता है। यहाँ पीर की दरगाह है। रेगिस्तान की झाखी यहाँ से होती है। रास्ते में "माता का मढ" धार्मिक स्थान है। जहाँ नवरात्रि के पर्व पर लोग पद यात्रा करते हुए श्रद्धा भाव से दर्शनार्थे आते है। आगे नखत्राणा पाकृतिक नजारो का केंद्र बना है। आगे रास्ते में चक्ष, पुरेश्वर मंदिर जैसे मनोहारी प्राचीन स्थान है। अब कच्छ का मुख्य केंद्र भुज आते ही उसके वैभव का परिचय होता है। आयना महल, प्राग महल, टावर, स्वामीनारायण मंदिर, हिल गार्डन, हमीरसर तालाब, भुजिया पहाड़, लोक संग्रहालय, विश्व विद्यालय, आदि के दर्शन करके हम आनंद ले सकते है। सन 2001 के भूकंप ने इसे खंडित किया तो लोगो ने उसे नए स्वरूप में पुनः निर्माण करके और सुंदर शहर बना दिया है।
भुज के उत्तर दिशा की ओर खावड़ा में काला डुंगर है। पहाड़ पर चढ़कर रेगिस्तान की झखी करना एक अनूठा अनुभव है। सरकार एवं स्थानीय लोगों द्वारा रणोत्सव का आयोजन होता है। देश और विदेश से लोग यहाँ रणोत्सव में आते है। सफेद रेगिस्तान को देखना एक आनंददायी घटना है।
भुज से अंजार से भी जाया जाता है। आगे बढ़ते हुए सृजन संस्था में यहाँ के प्रजा की हस्तकला का परिचय होता है। अंजार में जेसल-तोरल की समाधि का मंदिर बना हुआ है जो ऐतिहासिक स्थान है। सृजनबारी नामक स्थान से हमारी यात्रा पूर्ण होती है। जो अविस्मरणीय स्मृतियां छोड़ जाती है। कच्छ गुजरात का गौरव है और दुनियाभर के लोगो के लिए किसी भी मौसम में दर्शनीय एवं आकर्षण का केन्द्र है।
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4 Comments
good
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteGood work
ReplyDeleteआपको हमारी पोस्ट अच्छी लगी हो तो कॉमेंट जरूर करें।