भारत देश में जातिप्रमाण कम हैं। सबसे ज्यादा जाती प्रमाण केरल राज्य में है। देश में जातिप्रमाण बढ़ाने के लिए सरकार अनेक प्रकार की योजना लॉन्च की है। देश में जातिप्रमाण बढ़ाने के लिए सरकार बेटियों को लाभ देते हैं।
बेटी का जन्म परिवार में आर्शीवाद रूप होता है। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में बेटियों के जन्म को एक अभिशाप मानते हैं।
" नारी तु नारायणी "
इस पंक्ति में नारी को साक्षात नारायणी का पद दिया है। नारी को लक्ष्मी के रूप में माना जाता है। जिस परिवार में नारी की इज्ज़त होती है उस परिवार में भगवान का वास होता है। प्राचीन समय में नारी के प्रत्ये धृणा स देखते थे। वर्तमान समय में महिलाओं ने अनेक क्षेत्रों में सिद्धि हासिल की है।
एक परिवार में बेटी का जन्म अभिशाप नही बल्कि समाज के लिए आर्शीवाद हैं। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर मानव जीवन बेटी के जन्म से ही संभव है। लोग अपनी आस्था के अनुसार त्योहारो पर अलग-अलग देवी का आर्शीवाद लेने के लिए मंदिर जाते हैं। एक महिला एक बेटी, बहन , माँ, पत्नी और कई अन्य पात्रो को बहुत खूबसूरती से निभा सकती है।
" नारी तु नारायणी "
इस पंक्ति में नारी को साक्षात नारायणी का पद दिया है। नारी को लक्ष्मी के रूप में माना जाता है। जिस परिवार में नारी की इज्ज़त होती है उस परिवार में भगवान का वास होता है। प्राचीन समय में नारी के प्रत्ये धृणा स देखते थे। वर्तमान समय में महिलाओं ने अनेक क्षेत्रों में सिद्धि हासिल की है।
एक परिवार में बेटी का जन्म अभिशाप नही बल्कि समाज के लिए आर्शीवाद हैं। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर मानव जीवन बेटी के जन्म से ही संभव है। लोग अपनी आस्था के अनुसार त्योहारो पर अलग-अलग देवी का आर्शीवाद लेने के लिए मंदिर जाते हैं। एक महिला एक बेटी, बहन , माँ, पत्नी और कई अन्य पात्रो को बहुत खूबसूरती से निभा सकती है।
एक बात सुनिश्चित है कि बेटी के बिना समाज का कोई भविष्य नही है। श्रीमती मेनका गांधी ने कहा था कि, " जिस समाज में महिलाओं की संख्या सीमित है, उस समाज का अस्तित्व भी सीमित है औऱ ऐसे समाज के लोग अधिक आक्रमक होते है क्योंकि कम महिलाओं के कारण समाज में प्यार भी कम होता है। सरकार द्वारा शरु किए गए " बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ" अभियान का मुख्य उद्देश्य स्त्री भ्रूण हत्या को रोकना, बेटियों को शिक्षित करना औऱ महिलाओं के खिलाफ हिंसा को खत्म करना है।
समाज में कहा जाता है कि " एक शिक्षित बेटी दो परिवारों को बचाती है।" यानी कि एक शिक्षित बेटी अपने मायके और अपने ससुराल दोनो परिवारों को शिक्षित करती है लेकिन दुःख की बात यह है कि समाज के लोग बेटे को समृद्धि बढ़ाने वाले मानते है। जिस समय से एक महिला गर्भवती हो जाती है, परिवार के सदस्य उससे बेटे की उम्मीद रखना शरू कर देते है और भ्रूण की जाच भी करवाते है। यदि लिंग परीक्षण से पता चलता है कि बच्चा एक बेटी है तो महिला गर्भ में बच्चे को मार देती है या उसकी मा को बेटी को जन्म देने के लिए आक्रोश के साथ देखा जाता है। भले बेटी का जन्म धरती पर हुआ हो, लेकिन उसे सजा के रूप में बड़ो, मातापिता और रिश्तेदारों से उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा कुपोषण, अशिक्षा, खराब जीवन शैली, यौन शोषण, दहेज प्रथा आदि को सहन करना पड़ता है।
बेटी उसके पिता की एक राजकुमारी है। बेटी पिता का सबसे ज्यादा खयाल रखती है। बेटी सादी के बाद मातापिता को छोड़कर अपनी नई दुनिया बनाने के लिए ससुराल चली जाती है।
महिलाओं को मूर्खतापूर्ण बैठने बजाय समाज में अत्याचार के खिलाफ बड़ी हिम्मत के साथ बोलने की जरूरत है। भारत में उन डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाने चाहिए जो कुछ पैसे कमाने के लिए अजन्मे बच्चे के लिंग का परीक्षण करते है और यदि बच्चा एक बेटी है, तो मातापिता के इशारे पर बच्चे को मारे और इन कानूनों को सख्त से लागु करे। तभी हम उम्मीद रखते है कि भारत में बेटियाँ सुरक्षित है और उनका भविष्य उज्ज्वल है।
यदि महिला को स्वतंत्रता, सम्मान और समान अधिकार दिया जाता है तो आज कोई कार्य या क्षेत्र नही है जहाँ एक महिला पुरूष समकक्ष नही हो सकती। मधर टेरेसा, इंदिरा गांधी, किरन बेदी, लता मंगेशकर, सोनिया मिर्जा सभी ने अपने-अपने क्षेत्रों में बडी मेहनत की है। जिसे किसी के लिए "रॉल मॉडल" माना जा सकता है। एक औरत, एक आदमी और एक घर के बिना पूरी दुनिया अधूरी है।
"हाय ! अबला तेरी यही कहानी ।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।।"
- मैथिलीशरण गुप्त
पंकितयों द्वारा बरसों से समाज नारी को अबला का प्रतीक देकर मानो उसकी उपेक्षा कर रहा है। कभी किसी समाज ने सोचा है कि जिस माँ की गोद से पैदा होकर आज वह समाज का एक अंग बना है उसी माँ को अबला की उपाधि दे दी। पुरूष प्रधान समाज अपनी इसी पौरुषत्व की हुँकार में इतिहास से लेकर आधुनिक युग तक लड़कियों को दूध पीती करते थे, या माँ की कोख़ में ही उसका गला घोंट देते है।
"हाय ! अबला तेरी यही कहानी ।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।।"
- मैथिलीशरण गुप्त
पंकितयों द्वारा बरसों से समाज नारी को अबला का प्रतीक देकर मानो उसकी उपेक्षा कर रहा है। कभी किसी समाज ने सोचा है कि जिस माँ की गोद से पैदा होकर आज वह समाज का एक अंग बना है उसी माँ को अबला की उपाधि दे दी। पुरूष प्रधान समाज अपनी इसी पौरुषत्व की हुँकार में इतिहास से लेकर आधुनिक युग तक लड़कियों को दूध पीती करते थे, या माँ की कोख़ में ही उसका गला घोंट देते है।
5 Comments
Good work
ReplyDeleteGood
ReplyDeletegood post
ReplyDeleteNice post bhai
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